Bihar Board Class 6 Hindi Kisalya Solutions Chapter 2 असली चित्र Text Book Questions and Answers and Summary
Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 2 असली चित्र
किसलय
अध्याय 2. असली चित्रपाठ से :
असली चित्र Question Answer प्रश्न 1.
यह कहानी आपको कैसी लगी? इस संदर्भ में आप अपने विचार लिखिए |
उत्तर—यह कहानी (असली चित्र) मुझे बहुत अच्छी लगी । इस कहानी में एक कंजूस सेठ की कंजूसी और उसके द्वारा एक चित्रकार को परेशान करने की घटना का मनोरंजक वर्णन किया गया है। इसके साथ ही इसमें तेनालीराम की बुद्धिमानी और सूझ-बूझ का भी उल्लेख किया गया है ।
Bihar Board Class 6 Hindi Kisalya Book Solutions प्रश्न 2.
इस कहानी का कौन-सा पात्र अच्छा लगा और क्यों?
उत्तर—इस कहानी का एक पात्र तेनालीराम मुझे अच्छा लगा । तेनालीराम एक बुद्धिमान व्यक्ति था और राजा कृष्णदेव राय के दरबार में विदूषक था । इस कहानी में उसी की बुद्धिमानी और सूझ-बूझ से एक चित्रकार को एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ प्राप्त हुई । ये मुद्राएँ एक कंजूस सेठ से प्राप्त की गईं ।
Class 6 Hindi Bihar Board प्रश्न 3.
तेनालीराम ने इस घटना की खबर राजा को दी तो क्या हुआ ?
उत्तर – तेनालीराम ने इस घटना की खबर जब राजा कृष्णदेव राय को दी तो वे हँसते-हँसते लोट-पोट हो गए ।
Kisalya Hindi Book Class 6 Solutions प्रश्न 4.
"एक कौड़ी खर्च करने में उसकी जान निकलती थी । " इस वाक्य का आशय स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – दिए गए वाक्य का आशय यह है कि सेठ बहुत कंजूस था । वह केवल धन इकट्ठा करना जानता था। अपने धन में से एक कौड़ी खर्च करने पर उसे ऐसा लगता था मानो उसकी जान ही निकल जाएगी। वह अपने लिए भी कुछ खर्च नहीं कर सकता था ।
प्रश्न 5. रिक्त स्थानों को भरें :
(क) कंजूस सेठ ने चित्रकार से…देने का वादा किया ।
(ख) यह कहानी राजा….के राज्य की है।
(ग) चित्रकार ने….से सलाह ली।
(घ) एक दिन चित्रकार….लेकर सेठ के पास पहुँचा ।
(ङ) तेनालीराम राजा कृष्णदेव राय के दरबार में….थे ।
उत्तर – (क) एक सौ स्वर्ण मुद्राएँ, (ख) कृष्णदेव राय, (ग) तेनालीराम, (घ) एक आईना, (ङ) विदूषक ।
पाठ से आगे :
प्रश्न 1. चित्रकार की जगह आप होते तो क्या करते ?
उत्तर – यदि मैं चित्रकार की जगह होता तो बार-बार उस कंजूस सेठ का चित्र नहीं बनाता। बस, एक से दो बार ही चित्र बनाकर ले जाता। उसकी धूर्तता समझ में आ जाने पर पहले तो उसे समझाता । उसके न मानने पर मैं भी किसी बुद्धिमान व्यक्ति से सलाह लेता और उसके अनुसार कार्य करता ।
प्रश्न 2. गप्प लगाने से नुकसान ज्यादा होता है या फायदा? पाँच वाक्यों में लिखें ।
उत्तर - 1. व्यर्थ का गप्प लगाने से नुकसान ही होता है।
2. इससे समय बर्बाद होता है।
3. किसी समस्या का समाधान नहीं होता है ।
4. व्यर्थ के गप्पबाजों को बेकार समझा जाता है।
5: गप्प यदि किसी समस्या के समाधान के लिए लगाया जाए तो वह अच्छा होता है।
प्रश्न 3 बार बार कंजूस सेठ द्वारा अपना चेहरा बदल लेने के बाद चित्रकार को सलाह किसने दी? दी गई सलाह का क्या परिणाम हुआ ?
उत्तर- बार बार कंजूस सेठ द्वारा अपना चेहरा बदल लेने के बाद चित्रकार को तेनालीराम ने सलाह दी। उसने सलाह दी कि चित्रकार एक आईना लेकर सेट के पास जाए और उसे दिखाकर कहे कि इसी में उसका सही चित्र बना है। तेनालीराम द्वारा दी गई सलाह मुझे बहुत अच्छी लगी। सेठ
कंजूस ही नहीं, बहुत बड़ा धूर्त भी था। उसे बुद्धिमानी से ही झुकाया जा सकता था। इसका परिणाम यह हुआ कि उसे सौ स्वर्ण मुद्राओं के बदले हजार मुद्राएँ देनी पड़ीं।
व्याकरण :
प्रश्न 1. बॉक्स में दिए गए शब्दों को संज्ञा के विभिन्न भेदों में छाँटकर लिखें।
| कृष्णदेव राय, चित्रकार, तेनालीराम, पानी, आईना, लोग, कंजूसी, दूध, ईमानदारी, गाय, पढ़ाई, वर्ग, चीनी, हिमालय, मेला |
जातिवाचक संज्ञा
व्यक्तिवाचक संज्ञा
भाववाचक संज्ञा
द्रव्यवाचक संज्ञा
समूहवाचक संज्ञा
उत्तर :
जातिवाचक संज्ञा – चित्रकार, आईना, लोग, गाय ।
व्यक्तिवाचक संज्ञा – कृष्णदेव राय, तेनालीराम, हिमालय ।
भाववाचक संज्ञा - कंजूसी, ईमानदारी, पढ़ाई ।
द्रव्यवाचक संज्ञा - पानी, दूध, चीनी ।
समूहवाचक संज्ञा – वर्ग, मेला ।
प्रश्न 2. इन मुहावरों का वाक्य में प्रयोग करें :
पानी-पानी होना, काम चाँदी होना, हँसते-हँसते लोट-पोट होना, हिम्मत हारना, भौंचक रह जाना ।
उत्तर : पानी-पानी होना (लज्जित होना)-अपने बेटे की करतूत, सुनकर वह पानी-पानी हो गया ।
काम चाँदी होना (काम में सफल होना) - तुम मेरी सलाह मानो । तुम्हारा काम चाँदी हो जाएगा।
हँसते-हँसते लोट-पोट होना (खूब हँसना)— उसका लतीफा सुनकर सभी हँसते-हँसते लोट-पोट हो गए ।
हिम्मत हारना (पस्त होना, साहस खोना) – किसी काम में हिम्मत हारने से उस काम में सफलता नहीं मिलती।
भौंचक रह जाना (आश्चर्यित होना)– एक छोटे बच्चे के मुँह से ज्ञान की बातें सुनकर सभी भौंचक रह गए ।
प्रश्न 3. इनके विपरीतार्थक शब्द लिखिए :
अपार, नया, निराशा, समझ, देर, सही ।
उत्तर : अपार - पार, नया- पुराना, निराशा - आशा, समझ- नासमझ, देर - जल्दी, सही-गलत ।
प्रश्न 4. निम्न शब्दों से वाक्य बनाइए :
चित्रकार, पत्रकार, सलाहकार, नाटककार ।
उत्तर :
चित्रकार= यह चित्रकार सुन्दर चित्र बनाता
पत्रकार= = पत्रकार समाचार एकत्र करता
सलाहकार= किसी अच्छे सलाहकार से सलाह लो।
नाटककार= अच्छे नाटककार ही अच्छा नाटक बनाते हैं।
कुछ करने को :
प्रश्न 1. तेनालीराम की तरह बीरबल और गोनू झा के किस्से भी प्रचलित हैं। अपनी कक्षा में वैसे किस्से सुनाएँ ।
उत्तर-संकेत : छात्र अपने विद्यालय के पुस्तकालय से बीरबल और गोनू झां के किस्से की किताब लेकर अपनी कक्षा में सुनाएँ ।
प्रश्न 2. अपने मित्रों के बीच इसी तरह की कोई रोचक कहानी
सुनाएँ और सुनें।
उत्तर- संकेत : छात्र स्वयं कहानी सुने और सुनाएँ ।
प्रश्न 3. इस कहानी को एकांकी के रूप में कक्षा में प्रस्तुत करें ।
उत्तर :
असली चित्र (एकांकी)
दृश्य एक:
(एक कमरे में एक टेबुल के पास तीन मित्र रंजन, सिद्धू और अमजद कुर्सियों पर बैठकर कुछ बातें कर रहे हैं।)
रंजन : भाई अमजद, हमारा एक मित्र धनपत है तो बहुत बड़ा सेठ, लेकिन उतना ही बड़ा बल्कि उससे भी बड़ा कंजूस भी है।
अमजद: अरे, कंजूस ही क्यों, मक्खीचूस कहो।
सिद्धू : ठीक कहते हो। एक पैसा खर्च करने में उसकी जान निकल जाती है।
रंजन : तो कैसे उससे कुछ खर्च करवाया जाए ? (सभी कुछ क्षण चुप रह जाते हैं।)
सिद्ध : मेरा विचार है कि उसे अपना एक चित्र बनवाने के लिए राजी किया जाए।
ठीक कहते हो । मेरा परिचित एक बहुत अच्छा चित्रकार है ।
बड़ा भला और ईमानदार आदमी है।
अमजद : (तीनों मित्र सेठ धनपत के यहाँ जाने का विचार करते हैं । )
दृश्य दो :
(सेठ धनपत की बैठकी। सेठ धनपत एक चटाई पर बैठा है। बैठक के एक कोने में एक पुराना बेच और दूसरे कोने में एक तिपाई है। रंजन, अमजद और सिद्धू एक आदमी के साथ वहाँ आते हैं।)
धनपत : अरे, ये त्रिमूर्ति एक साथ मेरे यहाँ ! कहो भाइयो, कैसे आना हुआ इस गरीब की कुटिया में ? ( साथ के आदमी की ओर इशारा करके) और इनका परिचय ?
अमजद : अरे, ये भी हमारे मित्र ही हैं। बड़े अच्छे चित्रकार हैं।
रंजन :हमलोग चाहते हैं कि तुम इनसे अपना एक चित्र बनवा लो।
धनपत : चित्र ? भला मैं अपना चित्र क्यों बनवा लूँ ?
सिद्धू : अरे भाई, यादगारी के लिए। बस, मात्र एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ देनी हैं तुम्हें ।
धनपत :(मुँह सिकुराते हुए) मात्र एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ कहने में कुछ लगा तुम्हें ? इतनी बड़ी रकम मैं कहाँ से लाऊँगा ? बड़ी तंगी है इन दिनों । नहीं, मुझे अपना चित्र नहीं बनवाना है।
अमजद : यह रकम बहुत बड़ी नहीं है तुम्हारे लिए । धनपत भाई ! जरा सोचो, जब तुम्हारे पोते-परपोते देखेंगे तुम्हारे चित्र को तो गर्व से कहेंगे कितने अच्छे थे हमारे दादा जरा सोचो, तुम्हारी आत्मा जहाँ कहीं भी होगी, यह सुनकर कितनी खुश होगी ! (सभी एक साथ) हाँ, हाँ धनपत भाई, अब बनवा ही लो अपना चित्र ।
धनपत : (कुछ सोचकर) अच्छा तुमलोग कहते हो तो बनवा लेता हूँ अपना चित्र। (चित्रकार से) अच्छा, कल ले आओ मेरा चित्र बनाकर। लेकिन चित्र ठीक मेरे चेहरे से बिलकुल मिलता
हुआ होना चाहिए ।
चित्रकार: (प्रसन्न होकर) हाँ, दूँगा । (सबका प्रस्थान) सेठ जी! शिकायत का मौका मैं नहीं दूंगा
दृश्य तीन :
(सेठ धनपत अपने घर पर है। सामने से चित्रकार आता दिखाई देता है।)
धनपत : आ रहे हो बच्चू । आओ, मजा चखाता हूँ अभी। मैं भी तुमसे कम कलाकार नहीं हूँ। (घर में जाकर अपना चेहरा बदलकर बाहर आता है।)
चित्रकार : लीजिए सेठ जी, यह रहा आपका चित्र ।
धनपत : (चित्र हाथ में लेकर) तुम्हारा चित्र तो मेरे चेहरे से मिलता ही नहीं। फिर यह मेरे किस काम का ? ठीक मेरे चेहरे सेमिलता हुआ चित्र बनाकर लाओगे, तभी उसकी कीमत अदा करूँगा।
(चित्रकार निराश होकर चला जाता है। दूसरे दिन
तीसरे दिन लगातार कई दिनों तक चित्रकार नए-नए चित्र
बनाकर लाता है और हर बार वही परिणाम होता है।)
दृश्य चार :
( तेनालीराम का घर । तेनालीराम अपने दरवाजे पर बैठा है। चित्रकार वहाँ आता है।)
तेनालीराम : आओ चित्रकार जी। कहो, तुम उदास क्यों हो ?
चित्रकार : क्या कहूँ तेनालीराम जी ? वह धनपत सेठ है न ! लगातार कई दिनों तक उसने अपना चित्र मुझसे बनवाया । वह हर बार अपना चेहरा बदलकर मेरे सामने आता है और
बनाया चित्र लौटा देता है। मेरे चित्रों का मूल्य एक हजार
स्वर्ण मुद्राएँ नहीं देता है। अब आप ही मूल्य वसूलने
का कोई उपाय बताइए ।
तेनालीराम : (कुछ सोचकर) मैं समझ गया उस कंजूस सेठ की चालाकी । चिन्ता मत करो । कल एक आईना लेकर जाओ और कहो कि आज आपका बिलकुल सही चित्र लेकर
आया हूँ, ठीक से मिलाकर देख लें। बस इतना भर करो
और तुम्हारा काम बन गया ।
(दूसरे दिन चित्रकार धनपत सेठ के पास जाता है। आईना सेठ के सामने रख देता है।)
चित्रकार: सेठ जी, आज आपका बिलकुल सही चित्र बनाकर लाया हूँ। देख लीजिए। अब इसमें किसी प्रकार की कमी नहीं है।
धनपत : (बौखलाकर) अरे, यह चित्र कहाँ है ? यह तो आईना है।
चित्रकार: सेठ जी, आईना के सिवा आपकी असली सूरत और कोई नहीं बना सकता। बस, जल्दी से मेरे चित्रों का मूल्य एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ निकालिए ।
(सेठ समझ जाता है कि यह तेनालीराम की बुद्धि और सूझबूझ है । )
धनपत : लो भाई, अपनी एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ ।
(चित्रकार मुद्राएँ लेकर खुशी-खुशी चला जाता है।)
(परदा गिरता है।)
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
I.निम्नलिखित प्रश्नों के सही उत्तर का संकेताक्षर (क, ख, ग या घ) लिखिए :
1. 'असली चित्र' नीचे लिखे में से क्या है ?
(ग) कविता
(ख) कहानी
(क) निबंध
2. कृष्णदेव राय क्या थे ?
(क) एक चित्रकार
(ख) एक सेठ
(ग) एक मंत्री
(घ) एक राजा
3. अपने चेहरे की आकृति बदलने में कौन माहिर था ?
(क) कंजूस सेठ
(ख) राजा कृष्णदेव राय
(ग) तेनालीराम
(घ) स्वयं चित्रकार
4. चित्रकार के चित्रों का मूल्य क्या था ?
(क) चाँदी का एक सिक्का
(ख) दो सौ स्वर्ण मुद्राएँ
(ग) एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ
(घ) एक हजार चाँदी की मुद्राएँ
5. चित्रकार बार-बार किसका चित्र
(क) राजा कृष्णदेव राय का
(ख) एक कंजूस सेठ का
(ग) तेनालीराम
(घ) सेठ के मित्रों का
उत्तर : 1. (ख), 2. (घ), 3. (क), 4. (ग), 5. (ख)।
II.कोष्ठक के उचित शब्दों से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :
(क) राजा कृष्णदेव राय के राज्य में एक.......रहता था। (राजा / बनिया / कंजूस सेठ)
(ख) एक बार सेठ के मित्रों ने उससे…बनवाने के लिए राजी कर लिया । (अपना चित्र / बाल / कुर्ता)
(ग)....ने चित्र मिलाकर देखा तो भौंचक रह गया।(पत्रकार / चित्रकार / मूर्तिकार)
(घ) अगले दिन चित्रकार फिर एक….बनाकर ले गया।(मूर्ति / नया चित्र / बाजा)
(ङ) तेनालीराम से घटना की खबर सुनकर राजा कृष्णदेव राय .…हो गए। (मूर्छित / बेहोश / हँसते-हँसते/ लोट-पोट )
उत्तर : (क) कंजूस सेठ, (ख) अपना चित्र, (ग) चित्रकार, (घ) नया चित्र, (ङ) हँसते-हँसते लोट-पोट ।